राजस्थान….!! नाम सुनकर मन में जो पहली तस्वीर उभरती है वो है रेत के टीलो से भरे पड़े मैदानो, ऊँटो की कतारो और घूमते फिरते बंजारों की। नदी तालाबो का नाम नहीं, पानी की खूब कमी कुछ ऐसी ही तस्वीर है जनमानस के मन में राजस्थान की है। क्या वास्तव में पूरा राजस्थान एक रेगिस्तान है जहाँ रेत के सिवा कोई अन्य भू भाग नहीं। जवाब है नहीं…!!!
वास्तव में राजस्थान क्षेत्रफल की द्रष्टी से भारत का सबसे बड़ा राज्य है जिसमे रेत के टीलो, ऊँटो और बंजारों के अलावा और भी बहुत कुछ है।सांस्कृतिक दृष्टी से भी बहुत समृद्ध है राजस्थान। धन धान्य, प्रकृति से प्राप्त सभी प्रकार के उपहारों से समृद्ध है राजस्थान। महान राजाओ, वीरांगनाओ और क्षत्रियो की धरती है राजस्थान। दुर्ग, किले और महलो की धरती है राजस्थान। विशाल थार के रेगिस्तान, लंबी अरावली पर्वत श्रंखला, ऊँचे आबू पर्वत, घने रणथंबोर के जंगल की धरती है राजस्थान, उत्तम शिल्प–वास्तुकला की धरती है राजस्थान। राजसमन्द एवं जयसमंद जैसे बड़े तालाबो तथा झीलो की धरती है राजस्थान। भारत भूमि का सजग प्रहरी है राजस्थान जिसने सदियो से इस देवभूमि की बर्बर आक्रांताओ से रक्षा की है।
प्राचीन भारत का सीमावर्ती राज्य होने से यह प्रदेश प्रारम्भ से ही व्यापार का केंद्र रहा है तथा धन धान्य से संपन्न रहा है। इस सम्पन्नता ने ही कई विदेशी आक्रमणकारियो तथा लुटेरो को आकर्षित किया और हर बार यहाँ के महान् वीरो ने उन्हें पराजित किया।
प्राचीन राजस्थान सांस्कृतिक आधार पर 4 प्रान्तो में विभाजित किया जा सकता है जिसमे मेवाड़, मारवाड़, शेखावटी तथा हाडौती शामिल है।मारवाड़ इन चारो में सबसे बड़ा तथा संपन्न प्रान्त है, जिसमे वर्तमान का जोधपुर, जालोर, बाड़मेर, पाली एवं अन्य समीपवर्ती जिले सम्मलित है।
मेवाड़ की धरती जिसने कई वीर योद्धाओ को जन्म दिया, जिन्होंने ना सिर्फ राजस्थान बल्कि पुरे भारत वर्ष का सदियो तक अपने शौर्य से रक्षण प्रदान किया। राजस्थान के इस परिचय में मेवाड़ को हम विस्तृत रूप से देखेंगे जिसमे मेवाड़ के इतिहास, भूगोल तथा संस्कृति तथा अन्य सभी विषयो पर आवश्यक, विस्तृत तथा रोचक वर्णन किया जायेगा। वर्तमान के उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमन्द तथा भीलवाड़ा जिलो का संयुक्त रूप प्राचीन में मेवाड़ राज्य के नाम से जाना जाता था।
इसी धरती पर बप्पा रावल,राणा कुम्भा, राणा सांगा तथा विश्व प्रसिद्द महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धाओ ने जन्म लिया। रानी पद्मावती और रानी कर्णावती और पन्ना धाय माँ जैसी वीरांगनाओ ने अतुलनीय बलिदानो से पुरे विश्व को त्याग तथा बलिदानो का वास्तविक परिचय दिया है। झाला मानसिंह ने स्वामिभक्ति तो भामाशाह ने दान का, राणा पूंजा ने शौर्य का तो रामशाल तंवर ने मित्रता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।
चेतक घोड़े और रामसिंह हाथी ने पशु होने के बावजूद प्रेम और समर्पण का जो प्रदर्शन किया है वो अतुलनीय है।
यदि मेवाड़ के इतिहास पर नजर डाले तो ये पता चलता है की ये एकमात्र राजवंश है, जो 700वीं शताब्दी से ले कर आज तक अपने राज्य से हस्तांतरित नहीं हुए है अर्थात् शत्रु कितना भी प्रबल क्यों ना आया हो, संकट कितना भी बड़ा क्यों ना हो परंतु मेवाड़ राज्य पर ईश्वर की कृपा सदैव बनी रही और आज भी इसी राजवंश की पीढ़ी का अपने राज्य पर गौरव भरा अधिकार है।मोहम्मद गौरी से लेकर ख़िलजी, तुगलक, लोधी तथा मुगलो तक ने इस राज्य पर कब्ज़ा करने का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रयास किया परंतु यहाँ की धरती ने भी प्रबल प्रतापी सपूतो को जन्म देने का कार्य जारी रखा। भारत भूमि पर सबसे अधिक समय तक शासन करने वालोें में मुग़ल सल्तनत का नाम प्रमुख है जिन्होंने मेवाड़ राज्य को छोड़ कर लगभग सम्पूर्ण भारत पर कब्ज़ा कर लिया था। परंतु मेवाड़ राज्य पर बल तथा शक्ति से मुग़ल भी कभी विजय प्राप्त नहीं कर सके।
मेवाड़ राज्य के गौरवशाली 1300 वर्ष के इतिहास को दो हिस्सों में समझा जा सकता है , एक 700 वीं सदी से ले कर 1500 वीं शताब्दी तक ,तथा 1500 वीं शताब्दी से ले कर आज तक। प्रथम काल खंड पूरी तरह से वीरता,शौर्य तथा बलिदान की अद्भुत गाथा है तथा दूसरा काल खंड शांति,स्तिरथा एवं समन्वय का उत्कर्ष उदाहरण है। इस अंक में राजस्थान तथा मेवाड़ का एक सँक्षिप्त परिचय दिया गया है, आगे आने वाले अंको में मेवाड़ राज्य की स्थापना से लेकर इसके विकास तथा शौर्य की गाथाओ से हम विस्तृत में जानकारी प्राप्त करेंगे।
! नमस्कार !
आशीष पुरोहित
Author NationKnows
Ture…. I born in Rajsthan 🙂